Wednesday, October 8, 2014

पद्मभूषण प्रो.थॉमस को अमेरिका का नेशनल मेडल ऑफ साइंस 

भारतीय मूल की 
वैज्ञानिक
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 चेतना 
हुई गौरवान्वित 
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन 

एक बार फिर एक भारतीय मूल की विशिष्ट प्रतिभा ने भारत का नाम रौशन कर दिखाया है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग के प्राध्यापक भारतवंशी थॉमस कैलथ उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चालू सप्ताह के दौरान अमेरिका के नेशनल मेडल आफ साइंस अवार्ड दिए जाने की घोषणा की है। 

पुणे में शिक्षा ग्रहण करने वाले कैलथ को भारत के नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी नवाजा जा चुका है। उन्होंने पुणे के कॉलेज आफ इंजीनियरिंग से बीई (दूरसंचार) किया है। इसके बाद उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्युट आफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एसएम और एससीडी की डिग्री ली।

गौरतलब है कि मैसाचुसेट्स से डिग्री लेने के बाद उन्होंने कैलिफोर्निया के जेट प्रोपल्सन लैब्स में काम किया और इसके बाद 1963 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक नियुक्त किए गए। 1969 में उनकी पदोन्नति करते हुए उन्हें प्राध्यापक बना दिया गया। वहआईईईई के फेलो हैं और उन्हें 2007 में आईईईई मेडल आफ ऑनर से सम्मानित किया गया। इनके अलावा आधा दर्जन राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें पहले ही मिल चुके हैं। 

राष्ट्रपति ओबामा ने किया ऐलान 
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राष्ट्रपति ओबामा ने नेशनल मेडल आफ टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन की भी घोषणा की। साल के अंत में व्हाइट हाउस में विशेष कार्यक्रम के दौरान नामित किए गए लोगों को यह मेडल दिए जाएंगे। व्हाइट हाउस के अनुसार, ओबामा ने कहा - हमारे विद्वानों और आविष्कारकों ने विश्व को समझने की क्षमता को बढ़ाया है, उनके क्षेत्रों में अमूल्य योगदान दिया है,कई जिंदगियों के सुधार में मदद की है। हमारा देश उनकी उपलब्धियों और खोज, जांच और आविष्कार में तल्लीन देशभर के सभी वैज्ञानिकों व तकनीशियनों से धनी है।

ज्ञातव्य है कि एमआईटी से इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पीएचडी की डिग्री पाने वाले कैथल भारत में जन्मे पहले भारतीय हैं। हिताची अमेरिकन प्रोफेसर ऑफ इंजीनियरिंग कैलथ 1963 में इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के संकाय में शामिल हुए लेकिन वह अपने अनुसंधान और लेखनी को लेकर सतत सक्रिय रहे।

कोशिश की ईमानदारी का नतीजा 
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दरअसल अमेरिका में,अपने स्वयं के प्रयासों के माध्यम से अपनी क्षमता को प्राप्त करना एक आदत की तरह शुमार है। वहां जैसे आत्मनिर्भरता जीवन का मुख्य उद्देश्य है। एक स्वतंत्र लगातार पूछताछ की जिस मानसिकता की आवश्यकता है और लगातार पारंपरिक ज्ञान को चुनौती देने का जो ज़ज़्बा है वही वहाँ की प्रतिभाओं को अन्वेषण के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। यह अक्सर ज्ञान का नया आयाम खोजने के लिए अपने दायरे से बाहर निकालकर सोचने की प्रवृत्ति है जो कभी हार मानना नहीं जानती। 

वैज्ञानिक अनुसंधान का युद्ध अचानक नहीं जीता  है। पहले कई लड़ाइयों की आवश्यकता है। फिर चाहिए धीरज। विज्ञान एक दिन में बनने वाली कहानी नहीं है। पश्चिम में, यह मानसिक विभूति आबाद है कि वहां के अनुसन्धाता विफलता से डरने के स्थान पर उसका जश्न मनाते हैं कि अब जीतने के लिए मील के पत्थर पर लिखी कोई नई इबारत तो लिखी हुई मिली। असफलता पर निराश होकर चुप बैठ जाना कोई समाधान नहीं हो सकता। 

लीनियर सिस्टम्स के धुरंधर 
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भारतीय मूल के छठवें व्यक्ति हैं, जिन्होंने ऊपर कही गई बातों को सिद्ध कर दिखाया है। वे अब 79 वर्ष के हैं। कैलथ स्टैनफोर्ड में 1963 में एसोसिएट प्रोफ़ेसर और 1968 में प्रोफ़ेसर बने। वर्तमान में वे वहीं प्रोफ़ेसर इमेरिटस हैं। उनके शिक्षण और शोध के प्रमुख विषयों में सूचना सिद्धांत, संचार, रैखिक प्रणालियाँ , आकलन और नियंत्रण, सिग्नल प्रोसेसिंग, अर्धचालक विनिर्माण, संभाव्यता और आँकड़े, मैट्रिक्स और ऑपरेटर सिद्धांत आदि हैं। शताधिक शोधार्थियों को मार्गदर्शन दिया है। प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 300 से अधिक शोध पत्र,कई किताबें, मोनोग्राफ सहित वृहत पाठ्य पुस्तक लीनियर सिस्टम्स और लीनियर एस्टीमेशन प्रकाशित। 

चिंतनीय है कि एक राष्ट्र की संस्कृति, विश्वास प्रणाली, मूल्य, दृष्टिकोण आदि की वैज्ञानिक अनुसंधान की गुणवत्ता का निर्धारण करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। मार्गदर्शन, नेतृत्व और दिशा के साथ-साथ निरंतर कुछ नया व सार्थक हासिल करने की तीव्र महत्वाकांक्षा के बगैर कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मिल सकती। बहरहाल गणित में फील्ड्स मॉडल जीतने वाले भारतीय मूल के युवा मंजुल भार्गव के बाद उम्रदराज़ प्रोफ़ेसर थॉमस का नाम हमारी सरज़मीं की मिट्टी की सुवास बनकर भारत का गौरव वर्धन कर रहा है। 
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हिन्दी विभाग,
शासकीय दिग्विजय पीजी कालेज, 
राजनांदगांव मो.9301054300 

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