Monday, September 2, 2013

हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आये हैं,
तुझसे गले लगना तो महज़ बहाना था।

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डॉ .चन्द्रकुमार जैन 


महेश भट्ट साहब के चुनिन्दा ट्वीट आज पढ़कर वीएनएस के अपने सुधी पाठकों से भी साझा करने का मन हुआ। कभी राजधानी रायपुर में मीडिया से जुड़े एक आयोजन में मंच पर उद्घोषणा का दायित्व निर्वहन करते हुए मेरी उनसे आत्मीय मुलाक़ात भी हुई थी। तब दूरदर्शन के स्टूडियो में ही मुझे शाबासी देते हुए उन्होंने मौके पर ही एक कागज़ के टुकड़े पर मुझे जो सन्देश लिखकर दिया था, वह आज भी मेरे पास एक यादगार तस्वीर सहित सुरक्षित है। श्री भट्ट ने लिखा है - प्रोफ़ेसर जैन, कीप योर सिन्सियारटी इनटैक्ट। और फिर क्या मेरे लिए उनका सुझाव एक धरोहर से भी अधिक ज़िन्दगी की ज़रुरत में तब्दील हो गया। आज भी उनसे  हुई मुलाक़ात की यादें ताज़ा हैं। 

बहरहाल भट्ट साहब के चुनिन्दा ख्यालों पर गौर फरमाइए और हो सके तो उनका लुत्फ़ भी उठाइये  - 

आपका काम अपने काम को पहचानना है और इसके बाद पूरे दिल से उसको खत्म करने में लग जाना है।
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चीजें हमें खुशी नहीं देतीं। हमारी खुशी इस बात पर डिपेंड करती है कि हम खुद क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं। जिंदगी से आपको क्या मिलेगा यह आपका एटिट्यूड तय करता है।
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प्रेस की स्वतंत्रता के विचार के साथ दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह जरूरी नहीं है कि प्रेस कई मौकों पर फेयर ही हो। ऐसी ही जिंदगी भी है।
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'खंजर चले किसी पर, तड़पते हैं हम 'अमीर'-- सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है' 22 मई 2013
एक अजीब शोर बरपा है कहीं, कोई खामोश हो गया है कहीं, तू मुझे ढूंढ़ मैं तुझे ढूढ़ूं, कोई हममें से खो गया है कहीं।
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लोग मस्जिदों में जन्नत तलाशा करते हैं, फुर्सत इतनी नहीं होती कदम मां के चूम लें।
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लोगों को फ्रीडम ऑफ स्पीच(बोलने की आजादी), तब दी गई जब पूंजीवादियों ने मास मीडिया पर पूरा कंट्रोल कर लिया।
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कॉस्मेटिक सर्जरीः लाखों महिलाएं हर साल अपने शरीर को बिगाड़ती हैं ताकि मीडिया द्वारा गढ़ी गई परफेक्ट इमेज हासिल कर सकें।
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राजेश खन्ना अपनी तस्वीरों, डायलॉग्स और गानों से हमारी जिंदगी की कहानियों का हिस्सा हैं।
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खुद को उस तरह देखना जैसे दूसरे लोग देखते हैं, लाइफ के सबसे मुश्किल कामों में से एक है।
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तूफान के बीतने का इंतजार करना जिंदगी नहीं है,बारिश में डांस सीखना ही असली जिंदगी है।
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सब कुछ समझने के लिए सबको माफ करना पड़ता है- बुद्ध
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सुनाः युद्ध की ट्रैजिडी यह है कि इसमें एक शख्स दूसरे शख्स को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए अपना बेस्ट करता है।
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पढ़ा: किसी पूर्वाग्रह को तोड़ना ऐटम तोड़ने से ज्यादा मुश्किल काम है।
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जिंदा रहना यानी हम क्या करने वाले हैं इसका फैसला करने की लगातार चलने वाली प्रक्रिया।
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गए दिनों की खुशबू पाकर...मैं दोबारा जी उठा था- नसीर काजमी
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ह्यूमन लैंग्वेज से 'बेटर' शब्द को हटा देना चाहिए। जो लोग समझते हैं कि वे बेटर हैं, खुद को दूसरों से सुपीरियर समझते हैं और ग्रेट फील करते हैं।
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जिंदगी में सुरक्षित रहने की कोशिश में हम ज्यादा से ज्यादा सतर्क होते जाते हैं और आखिरकार हमारी कोई जिंदगी ही नहीं रह जाती। सतर्क न रहें, आप अपने आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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जिस सच में आप विश्वास करते हैं और जिसके साथ आप चिपके हुए होते हैं, वह आपको नई चीजों को सुनने से रोकता है।
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जब्त लाजिम है मगर दुख है कयामत का फराज, जालिम अबके भी न रोएगा तो मर जाएगा।
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क्या है जो बदल गई है दुनिया... मैं भी तो बहुत बदल गया हूं- जॉन इलिया
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'प्रकृति में जितनी गहराई से पैठोगे, आप हर चीज को उतने ही बेहतर तरीके से समझ सकोगे'- अल्बर्ट आइंस्टाइन

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खुद से यह सवाल पूछिए, 'खुशियां पाने के लिए क्या मुझे सबका इस्तेमाल करना चाहिए? या दूसरों को खुशियां मिले, इसके लिए मुझे उनकी मदद करनी चाहिए?'- दलाई लामा
...लेकिन, दूसरों को खुशियां पाने में उनकी मदद नहीं करना ठीक वैसा ही है, जैसा अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए किसी का इस्तेमाल करना।
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दिमाग और समुद्र में एक बात समान है- दोनों निरंतर व्याकुल रहते हैं। 
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अंधेरे में कदम आगे बढ़ाने के लिए तैयार रहें। जवाबों और क्लियर रास्ता मिलने का इंतजार न करें। छलांग लगाएं और अपनी इंस्टिंक्ट पर भरोसा करें। 
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ज्ञान ही ताकत है - कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। 
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आदमी अपना दुख किसी तरह बर्दाश्त कर लेता है , लेकिन उससे दूसरे का सुख बर्दाश्त नहीं होता। 
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हम लगातार अपनी पसंद-नापसंद दूसरों पर थोप रहे हैं। थोपने का यह काम एक तरह से गन पाइंट पर हो रहा है। 
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हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए हैं 
तुझसे गले लगना तो महज बहाना था। 
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अपनी पहचान बनाने के लिए ' दूसरों ' से नफरत करना, डरना और उन पर अविश्वास करना आज भी फासिस्ट ग्रुपों का तरीका बना हुआ है। 
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सुना हैः स्वर्ग की सारी बातें तभी शुरू होती हैं जब हम कुछ खो चुके होते हैं। 
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