Thursday, October 11, 2012

सम्मान और सराहना से जीतें स्टाफ का दिल

किसी भी संस्था अथवा प्रतिष्ठान के  मुखिया की 
सबसे बड़ी ड्यूटी और चुनौती है ऐसे 
वातावरण का निर्माण करना जिसमें 
पूरा स्टाफ परस्पर सहयोग के भाव के 
साथ काम कर सकेप्रश्न यह है कि
वे कौन से रास्ते और तरीके हो सकते  हैं
जिनके दम पर कार्य के लिए बेहतर
माहौल का निर्माण संभव है

यदि  वास्तव में आप इस प्रश्न को लेकर गंभीर हैं तो इसका उत्तर भी आसान है. ऐसे कई उपाय हैं जिनसे कार्यस्थल की ऊर्जा को सकारात्मक और सृजनात्मक दिशा में अग्रसर किया जा सकता है,  जहाँ काम स्वयं एक तरह का आनंद और निर्माण का पर्याय बन जाए. आइये इन में से चुनिन्दा उपायों पर गौर करें.
 जी हाँजहाँ ट्रस्ट हो, विश्वास हो वहीं काम का माहौल और उसकी प्रबल इच्छा संभव है. संस्था में विश्वास के वातावरण का निर्माण अति महत्वपूर्ण कदम है. याद रहे सफल लीडर जानता है कि उसके स्टाफ के हर काम में उसकी खुद की इमेज उभर कर सामने आती हैदरअसल उसके विचारों और काम करने के तरीकों से उसकी पूरी टीम कम या अधिक प्रभावित होती है. इसलिए भरोसा या ट्रस्ट का सीधा अर्थ है मुखिया का वैसा होना जैसा वह कहता है. अगर वह बातें क्वालिटी की करे तो उसे अपने काम और काम लेने के तरीकों के साथ-साथ किससे कौन सा काम करवाया जाये जैसे मसलों पर भी क्वालिटी की बलि कभी नहीं चढ़ाना चाहिए. प्रतिभावान सदस्य से  दोयम दर्जे का या औपचारिक साधारण स्तर के काम लें तो बेहतर होगा.

जिस संस्था में कार्य की दशाएँ अच्छी हों, वहाँ का हर सदस्य स्वयं को महत्वपूर्ण अनुभव  करता है. यह तभी मुमकिन है जब मुखिया हरेक की बात पर गौर करे और कभी भी उसे अपमानित या ज़लील करे. बल्कि जो भी कहना या पूछना है नितांत अकेले  में कहें  या पूछे और यह भी कि अपने चहेतों के सामने यदि कोई हों, ऎसी हर बात का ज़िक्र भी न करें करे  ताकि हर सदस्य का आत्मसम्मान सुरक्षित रह सकेकाम  करके सिर्फ गप्प गोष्ठी तथा चापलूसी में वक्त बिताने वाले कुछ कर्मचारियों को जब संस्था प्रमुख सिर पर बिठा लेते हैं तब कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि माहौल स्वस्थ संवाद का नहीं रह जातालिहाजाजरूरत समझें तो सभी सदस्यों से पूछकरसुझाव लेकर काम देने और लेने का माहौल बनाएंखुले संवाद का वातावरण सचमुच एक बड़ी बात  है. इससे संस्था के काम की दशाएँ सुधरती हैं.

एक सामान्य सा सिद्धांत है कि लोग उतना ही अच्छा  कर पाते हैं जितने की आशा आप उनसे करते हैं. ये बात बड़े पते की है. यदि लीडर अपने स्टाफ से बड़े काम की उम्मीद करता हो तो उसे उसके साथ वैसा व्यवहार भी करना चाहिए. मशीनी ढर्रे वाले काम और क्रिएटिव वर्क के बीच अंतर समझे बगैर आप दोनों को अगर एक ही लाठी से हांकेंगे तो परिणाम कभी अच्छे नहीं मिल सकते. अगर आप किसी कर्मचारी को माइक्रो मैनेज करने की कोशिश करेंगे, उसकी लगातार और गैर ज़रूरी मानीटरिंग करेंगे तो वह कभी औसत दर्जे से ज्यादा नतीजे नहीं दे पायेगा. अतः लीडर को स्टाफ से सर्वोत्तम की आशा करने के साथ उसके अनुरूप वातावरण और सम्मान देना के लिए भी तत्पर रहना चाहिए.

मनुष्य की आधारभूत आकांक्षाओं में से एक यह है कि वह जहाँ काम करता है वहाँ से खुद से भी बड़ी किसी चीज़ की आशा करता हैउसकी यह आशा केवल तब पूरी ही सकती है जब संस्था अथवा प्रतिष्ठान में मिलजुलकर कार्य करने का वातावरण होइसलिए संस्था प्रमुख की यह अहम जिम्मेदारी हो जाती है कि वह टीम भावना के विकास पर प्राथमिकता से ध्यान देइससे टीम के सदस्य महत्त्व का अनुभव करेंगे फलस्वरूप उनमें संस्था से  के प्रति  गर्व बोध भी बना रहेगाइसका एक और परिणाम यह होगा कि वह काम करने में दिलचस्पी लेगा और अवकाश लेने या टालमटोल रवैये से दूर भी रहेगा. इससे अंततः संस्था की  प्रतिष्ठा और उत्पादकता भी बढ़ेगी.  
  सदस्यों के लिए सम्मान और सराहना प्रगति के लिए  संजीवनी के सामान है. जब कभी मुखिया के नाते आप किसी भी स्टाफ मेंबर को कुछ अच्छा करते देखें,  उसे अहसास कराएँ कि आपको इसकी  सिर्फ जानकारी है बल्कि इस अच्छाई से आपका दिल से वास्ता भी हैइतना ही नहींआप बड़े सधे हुए अंदाज़ में उस अच्छे काम की जानकारी अन्य सदस्यों तक भी पहुँचाएँ ताकि  प्रेरणा के साथ-साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का वातावरण भी बन सके. इससे दूसरों में कुछ बेहतर कर दिखाने  की ललक पैदा हो सकती है. सम्मान और प्रशंसा खुलकर करें. हो सके तो सबके सामने करें. याद रहे प्रशंसा सिर्फ ज़बानी जमा-खर्च बनकर रह जाए. उसमें हार्दिकता हो. इससे आपका स्टाफ स्वयं को संस्था का एक अहम हिस्सा मानकर काम करेगा. फिर क्या, बन जायेगी आपकी बात !


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