Saturday, April 17, 2010

हम पृथ्वी के नमक नहीं....!

हम पृथ्वी के नमक नहीं
इंसानियत के खमीर हैं
हमारी हथेलियों पर
भाग्य की रेखाएँ नहीं
अभिशाप के नक़्शे हैं
हमारे ह्रदय
हमारे मस्तिष्क का अस्तित्व नहीं
हम
केवल रस ग्रंथियों के समूह नहीं हैं।
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गुरुदेव कश्यप की रचना साभार प्रस्तुत.

2 comments:

honesty project democracy said...

JAIN SAHEB
ACHCHHI PRSTUTI HAI LEKIN ISE AAJ DESH AUR SAMAJ KI STHITI KO SARTHAK BADLAW KE OR MORNE KE LIYE BIWECHNA KARNE KI JAROORAT HAI.

हरीश करमचंदाणी said...

bahut achchhi magar adhuri si...