Thursday, April 9, 2009

कुछ मुक्तक और....!


हमें पसंद नहीं है, आप विवाद मत करिए,
जितने भी विवाद हैं, उन्हें याद मत करिए।
इसी में हमारा और आपका भला है -
समय कीमती है, इसे बरबाद मत कीजिए।।
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शरीर को हिलने से रोकोगे तो अकड़ जाएगा,
मन को मिलने से रोकोगे तो बिगड़ जाएगा।
क्या फूल खिलने से रुक सकता है ?
समाज को बदलने से रोकोगे तो पिछड़ जाएगा।।
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हर हालत में ख़ुशी खोज लेना, ख़ूबी की बात है,
ख़ुश इंसान के लिए हर रात दिवाली की रात है।
गमगीनी में रोशनी भी अँधेरा है,
खुश रहना,खुश रखना इंसान के हाथ है।।
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प्रतिध्वनि में संकलित
श्री मणिप्रभ सागर जी के मुक्तक साभार.

6 comments:

निर्मला कपिला said...

मुक्तक बहुत लाजवाब हैं बधाई

mehek said...

शरीर को हिलने से रोकोगे तो अकड़ जाएगा,
मन को मिलने से रोकोगे तो बिगड़ जाएगा।
क्या फूल खिलने से रुक सकता है ?
समाज को बदलने से रोकोगे तो पिछड़ जाएगा।।
waah lajawab hai saare,sunder chitra bhi.

परमजीत सिहँ बाली said...

सभी मुक्तक बहुत बढिया है।बधाई।

संगीता पुरी said...

बहुत सकारात्‍मक ... बहुत बढिया।

समयचक्र said...

मुक्तक बढिया है बधाई....

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है।