Sunday, November 30, 2008

हर सफ़र होता है निराला...!

सफ़र साँसों का

भरोसे की नहीं है बात

लेकिन...

भरोसे की साँस का

हर सफ़र होता है निराला

देश के जो काम आए

देश को जो प्राण बख्शे

व्यक्ति की हर साँस ने

है देश को हरदम संभाला

देश को जो तोड़ते हों

देश से मुख मोड़ते हों

उनका जीना और न जीना

एक-सा लगता मुझे है

जोड़ने वाली लड़ी साँसों की

हैं जो सिरजते नित

उनका जीना इस धरा पर

नेक-सा लगता मुझे है

धन्य हैं वे लोग जो

ख़ुद भूख सह लेते हैं

लेकिन...

जो कभी न छीनते हैं

गैर के मुख का निवाला

भरोसे की साँस का

हर सफ़र होता है निराला।

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Friday, November 28, 2008

जांबाज़ है जो मुल्क़ वह सोता नहीं, रोता नहीं !

अभ्यर्थना से अंत जब

आतंक का होता नहीं,

जांबाज़ है जो मुल्क़ वह

सोता नहीं, रोता नहीं।

रटने से कोई पाठ होती

शान्ति की स्थापना,

सोचें जरा यह काम

कर लेता कोई तोता नहीं!

यह वक़्त है कि चुनौती को

एक होकर समझिए,

आँखों के आगे धुंधलके में

अब न ज़्यादा उलझिए।

देश ! निर्दोषों की

निर्मम मौत मत तुम देखना,

बुज़दिल करें हमला अगर

घुटने कभी मत टेकना।

वीरों की धरती जानती है

राष्ट्र का क्या धर्म है,

जिससे सँवरता देश वह

केवल यहाँ सत्कर्म है।

सब मिल सुरक्षा के लिए

संग्राम का प्रण जब करें,

तब सच कहूँ कोई बड़ा

होता कोई छोटा नहीं,

जांबाज़ है जो मुल्क़ वह

सोता नहीं, रोता नहीं।

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Thursday, November 27, 2008

हर सुमन में सुरभि का वास नहीं होता !

हर सुमन में सुरभि का

वास नहीं होता,

हर दीपक का मनहर

प्रकाश नहीं होता।

हर किसी को प्राण अर्पित

किए जा सकते नहीं,

हर जीवन में मुस्काता

मधुमास नहीं होता।।

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Wednesday, November 26, 2008

ये क्या हो रहा है ?

बल्ब ज़िंदगी का

फ्यूज़ हुआ जा रहा है !

समझ का हर तार

लूज़ हुआ जा रहा है !!

जीवन मूल्यों को सब

जीते थे कल तक !

आदर्श आज देखो बस

न्यूज़ हुआ जा रहा है !!

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Tuesday, November 25, 2008

महावृक्ष बन गया बीज...!

महावृक्ष बन गया बीज

कर भू को सकल समर्पण !

बिन्दु बन गया सिन्धु मिटाके

अहंभाव का तर्पण !!

रज कण ने खोया अपने को

तब धरती कहलाया !

विरल समझ पाते अर्पण का

गहन बहुत है दर्शन !!

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Monday, November 24, 2008

जीवन क्या है...!

जीवन क्या है एक भयंकर

अति बीहड़ जंगल है !

तेज रोशनी वालों को

इसमें दिखता मंगल है !!

और शेष तो इसमें आकर

भटक-भटक जाते हैं !

अल्प जीतते,अधिक हारते

यह तो वह दंगल है !!

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Saturday, November 22, 2008

बजाए कौन शहनाई ...!

मिलन से पूर्व क्यों होता

यहाँ आना विदाई का !

बताओ पार पाया कौन

विधि की विकट खाई का !!

व्यथा की यह कथा सुनकर

धरा मन में ही मुस्काई !

मिले अरमान मिट्टी में

बजाए कौन शहनाई !!

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Thursday, November 20, 2008

जिव्हा नहीं...विस्फोटक है यह !

जिव्हा नहीं, यह विस्फोटक है
अणु शक्ति का है भण्डार !
क्षण भर में विध्वंसक बनकर
त्वरित मचाती हाहाकार !!
वही सुखद सुंदर सपनों का
कर सकती है नव निर्माण !
मुरझाई कलियों में क्षण में
भर सकती हैं नव मुस्कान !!
अगर नियंत्रण रख पाओ तो
वाणी जीवन अमृत है !
वरना विष है,याद रहे वह
तिल-तिल कर देती मृत है !!
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Tuesday, November 18, 2008

जीवन विधुत धारा है...!

सुख-दुःख के दो तार जुड़े हैं
जीवन विद्युत-धारा है
एक तार से बोलो कैसे
हो सकता उजियारा है !
सागर में भी भाटा आता
और कभी आता है ज्वार
उत्थान-पतन के बीच यहाँ
पाता हर मनुज सहारा है !
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Monday, November 17, 2008

ख़ुद में कमी कुछ खोजिए...!

दूसरों की खासियत

ख़ुद में कमी कुछ खोजिए

आलोचना मत कीजिए

लोचन ज़रा तो खोलिए

दो बोल मीठे बोलना

मुश्किल अगर मालूम हो

इतना ही तय कर लीजिए

कड़वे वचन मत बोलिए

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Friday, November 14, 2008

बस एक पर उपकार है....!

आभूषण नर देह का
बस एक पर उपकार है
हार को भूषन कहे
उस बुद्धि को धिक्कार है
स्वर्ण की ज़ंजीर बांधे
श्वान फ़िर भी श्वान है
मुक्ति को जो समझ ले
वो ही यहाँ इंसान है।
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Thursday, November 13, 2008

महिमा श्रद्धा की....!

श्रद्धा वह औषधि है

जो रोग मिटा देती है

श्रद्धा वह मशाल है

जो तिमिर भगा देती है

श्रद्धा के पारस से जीवन

बन जाता स्वर्ग यहाँ है

श्रद्धा वह नौका है

जो पार लगा देती है

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Monday, November 10, 2008

इनमें रमे राम....!

मेरे गीतों में तुम देखो
शब्दों के ये दीप जलेंगे।

करुणा से नाता है इनका
और विश्वास सदा संगी है
दूर भ्रमों की दुनिया से ये
इनका सत् भी सतरंगी है

छूकर जरा इन्हें देखो तुम
ये जीने की रीत मिलेंगे।

राजमहल को छोड़ कभी ये
वन में भी जाया करते हैं
और बेर शबरी के खाकर
सच्चा सुख पाया करते हैं

इनमें रमे राम कह दूँ मैं
ये केंवट की प्रीत मिलेंगे।

गीत मेरे दुखियों के आँसू
चुनते हैं अपनी पलकों से
मुस्कानों की नई कहानी
लिखते हैं अपने अश्कों से

पीड़ा का मंथन करते हैं,
पर ख़ुद ये नवनीत मिलेंगे।

Friday, November 7, 2008

दर्द सहो और हँसो....!

जीवन के गीत लिखो
कितनी भी पीड़ा हो
तुम हँसते मीत दिखो।

संकल्पी आंखों में सूरज के सपने हों
अँधियारी रातों में एक दिया बार दो
पलकों पर जो ठहरे आँसू उनको भी तुम
मोती-सी कीमत दो और ज़रा प्यार दो
और नई रीत लिखो
...जीवन के गीत लिखो।

जीवन की गागर से छलक-छलक जाए
उस पानी की कीमत आँकना बेमानी है
और जो समा जाए गागर में सागर-सा
मीत वही पानी तो जीवन का पानी है
और नई प्रीत लिखो
...जीवन के गीत लिखो।

मुक्त गगन में उड़कर धरती पर जो आया
पंछी से पूछो तो घोंसला ही क्यों भाया !
छेद हृदय में गहरे कितने भी हों लेकिन
बाँसुरी से पूछो तो मन उसका क्यों गाया ?
दर्द सहो और हँसो
...जीवन के गीत लिखो।
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Saturday, November 1, 2008

खुशी की राहें...!

ख़ुशी की राहें

ग़मगीन का साथ छोड़ देती हैं

ग़म की आंधी

खुशी की राहों को मोड़ देती है

हो साफ़ दिल तो

छल-कपट की बात भी क्यों हो

मतलब परस्ती

दिल का रिश्ता तोड़ देती है

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