Monday, August 18, 2008

मुलाक़ात की एक आस ऐसी भी...!

मुझे उनसे मिलना है
जो यह जानते हैं
कि वे कुछ नहीं जानते
मुझे उनसे मत मिलाना
जो स्वयं को सर्वज्ञ मानते हैं !
मुझे मिलना है उनसे
जो जलाकर अपना घर करते हैं
रौशन दुनिया औरों की
मुझे उनसे मत मिलाना
जो दूसरों के अंधेरे में सेंकते हैं
रोटी अपने उजाले की !
मुझे उनसे मिलना है
जो अपने घरों का कचरा
दूसरों पर नहीं फेंकते
उनसे मत मिलाना
जो दूसरों का आँचल देख
ख़ुद को बेदाग़ समझते हैं !
मुझे उनसे मिलना है
जो कुछ कहना और
कुछ करना भी जानते हों
मुझे उनसे मत मिलाना
जो सिर्फ़ कुछ दिखने को
सब कुछ मानते हों !
तो मुझे मिलना है उनसे
जो कभी ख़ुद से भी मिल चुके हों
मुझे उनसे मत मिलाना
जो अपनी ही हस्ती से फिसल चुके हों !
और मुझे मिलना है उनसे
जो जीने के लिए साँसों का साथ देते हैं
मुझे उनसे मत मिलाना
जो सिर्फ़ साँसों को जीना समझते हों !
और मुझे उनसे मिलना है
जो चाहे बैसाखी के सहारे चलते हों
पर मुझे उनसे कभी मत मिलाना
जो सहारों को ही बैसाखी मान बैठे हों !
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13 comments:

Unknown said...

बहुत खूब !
मुलाकात की एक आस ऐसी भी़........

बालकिशन said...

"जो यह जानते हैं
कि वे कुछ नहीं जानते
मुझे उनसे मत मिलाना "
मैं तो ये जानता ही नहीं वरन मानता भी हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता.
तब फ़िर मेरे से मुलाकात कैसे होगी?
सुंदर और यथार्थवादी रचना.
आभार.

शोभा said...

जो सिर्फ़ साँसों को जीना समझते हों !
और मुझे उनसे मिलना है
जो चाहे बैसाखी के सहारे चलते हों
पर मुझे उनसे कभी मत मिलाना
जो सहारों को ही बैसाखी मान बैठे हों
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई स्वीकारें।

शायदा said...

बहुत सुंदर भाव, सुंदर सोच भी।

36solutions said...

रचनाधर्म क्‍या है इस पर किताबें फांक रहे हैं, गुरूदेव कवि का दायित्‍व तो हमें आपकी कविताओं में नजर आती है ।

भावनात्‍मक रूप से झंकझोरती रचना के लिये आभार । आशा है कवि ब्‍लागर्स इससे सीख लेंगें ।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया,....

Anil Pusadkar said...

sunder bahut sunder

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आप सब के स्नेह पूर्ण
मंतव्य के लिए आभार.
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डा.चन्द्रकुमार जैन

admin said...

मुझे उनसे मत मिलाना
जो सिर्फ़ साँसों को जीना समझते हों !
और मुझे उनसे मिलना है
जो चाहे बैसाखी के सहारे चलते हों ।

बहुत सुन्दर विचार हैं। मैं आपकी इस सोच को सलाम करता हूं।

vipinkizindagi said...

अच्छी पोस्ट

Dr. Chandra Kumar Jain said...

महामंत्री-तस्लीम और विपिन
धन्यवाद.
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डा.चन्द्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

ऐसी आस... ऐसी मुलाकात !
बहुत अच्छी सोच और कविता... बहुत दिनों बाद आज भ्रमण कर रहा हूँ ब्लॉग पर. आपकी पिछली कई रचनाएँ भी पड़ी... 'एक आंसू का मोल' भी बहुत अच्छी लगी.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

धन्यवाद अभिषेक जी.
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चन्द्रकुमार